top of page
Writer's pictureAishwarya Saigal

कौहरा/Kohra (Mist/ Fog)



कौहरा

एक धुँध सी है।

एक कौहरा सा है।

हर साल इस इस शहर में एक समां सा छा जाता है।

हर साल, सर्दी अपने साथ एक सफ़ेद धुआँ लेके आती है।

पर ये धुआँ तो हर जगह पहले से ही छाया है।

हर चेहरे परे कहीं ख़ुशी का धुआँ,

तो कहीं दुःख का धुआँ।

हर किसी की आँखों में कहीं प्यार का कौहरा ,

तो कहीं दर्द,

कहीं पैसा,

तो कहीं तन्हाई।

यहाँ आदमी कौहरे में ही जी रहा है।

गिरता, पड़ता, उठता, संभलता,

चलता ही चला जा रहा है।

कही हाथ बढ़ाता है सँभालने के लिए,

तो कही सँभलने के लिए।

यहाँ वह दौड़ नहीं पाता।

गिरने के डर से वह दौड़ना चाहता ही नहीं।

इस सर्दी के कौहरे को उठते देखा है,

पर इस शहर को जागते कभी देखा ही नहीं।

इस धुँए को आँखों में लिए,

चले आये हम वहाँ, जहाँ एक नई धुँध छाती है।

एक लगन गुनगुनाति है.

अब इस कौहरे के परे ,

मुझे दिखते हैं तारे।

सोचती हूँ जाकर समेट लाऊँ वो सारे।

इन तारों की लौ में,

मैं एक अपना कोहरा बनाऊँगी,

ढलते हुए सूरज के रंगो में रचाऊँगी ,

और फिर मैं एक कौहरे में खो जाऊंगी।

धुँध से आयी थी,

धुँध में ही खो जाऊँगी।

ऐश्वरया १३ दिसबंर २००० (13 December 2000 on flight DEL-EWR)

Fog There’s a little mist

There’s some fog.

Every year this city is in a certain feeling

Every year the winter brings

a white smoke/ cloud, reeling

 

But this smoke lingers everywhere from before

On Every face, somewhere the cloud of happiness

Somewhere of sorrow

In every eye somewhere a cloud of love

Somewhere a cloud of pain

Somewhere money

Somewhere loneliness

 

Here mankind is living in a fog

Stumbling, falling, rising, learning

Walking on and on

Somewhere he extends his hand to help someone else

Somewhere, to steady himself

 

He isn’t able to run here

For the fear of falling, he doesn’t even want to run

I have seen the winter fog lifting

But have never seen this city awakening

 

I took the smoke in my eyes

And reached a place where a different fog rolls

There’s a buzzing vibe 

 Now beyond the mist I see stars

I think I’ll go gather them all.

In the light of these stars

I’ll make my own clouds

I’ll paint them with the colours of the setting sun

And then again I shall disappear in the rolling fog.

 

From mist I arose,

To the mist I’ll return !

 

Aishwarya Saigal

13.12.2020 (trans: 29.12.2020)




23 views0 comments

Related Posts

See All

Comments


bottom of page